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प्रेम रस





प्रेम रस   (दोहे)


प्रेम भावना जागती,  मन जव प्रिय के पास।

पिया बिना मन में कहाँ, सुरभित प्रेम प्रकाश  


आओ प्रियवर सन्निकट, कहीं न जाना दूर।

मेरे-तेरे शुभ मिलन,में हो सुख भरपूर। 


इंतजार अब त्याग कर,चलो मिलन को आज।

दिल का ताला तोड़कर, दो मीठी आवाज।।


ताज पहनकर प्रेम का,चल दो अब अविलम्ब।

प्रेम रूप साकार हो,रस का हो आलम्ब।।


रसना से बरसात हो,मादक लय-सुर-ताल।

मधुर-मधुर झंकार में, हो मनमोहक चाल।।


मिले प्रेम रस इस तरह, पीये मन भरपूर।

थकने का मत नाम ले,रहे मगन में चूर।।


तन प्याला में रस सरित, बहे सदा दिन-रात।

पढ़ते जाना अनवरत, सहज प्रेम की पात।।


रस बरसे टपके सतत,नूतन हो हर चाल।

भींगा-भींगा प्रेम तन,पहने स्नेहिल छाल।।


बूँद-बूँद से घट भरे,मन-उर हो संतृप्त।

रोम-रोम में हर्ष हो, जागे सकल सुसुप्त।।


संघर्षण हो अति सुखद, हर्षण हो नव-नव्य।

प्रेम पाग में डूबकर,दिखे दृश्य मधु भव्य।।


गीत लिखें गायें सतत, होय मिलन साकार।

प्रेम पंथ का पथिक बन, होय शिष्ट आचार।।


गले मिलें करबद्ध हो, बाहों में हो जोश।

प्रेम मदिर का पान कर, रहें नित्य मदहोश।।


एक रूप हो बैठ कर, करें सदा अभ्यास।

प्रेम दिव्य सहवास का,हो मादक अहसास।।


प्रीति पवन चलता रहे,मुस्कानों का गान।

दिल में प्रेम जगत खिले, बढ़े प्रेम का मान।।



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2 Comments

Abhilasha deshpande

12-Jan-2023 05:40 PM

अद्भुत

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अदिति झा

12-Jan-2023 04:24 PM

Nice 👍🏼

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